अरुणोदय व्याकुल विकल,
अति अधीर अकुलान।
नील निशा अम्बर घट में,
प्रीत अधूरी अनजान।।
प्रणयी प्रीत पुरानी सी ये,
जीवन भर संताप।
अंजानी आहत विकल,
अंजाना नित व्यवधान।।
बूँद बूँद सींची सुघर,
बूँद बूँद रिस रात।
जीवन घट रीता रहा,
रीत अधूरी अभिमान।।
दुर्बलता निज मर्म की,
व्याकुलता अभिशाप।
निरत शून्य निमग्न सा,
प्रेम विकल संताप।।
डाॅ• निशा पारीक जयपुर राजस्थान