इक बदली थी जो बरस गई

इक बदली थी जो बरस गई

इक बिरल धटा दे बरस गई

अब हरे भरे से खेत नए

अब धुली धुली सी धरती है

हर चाह नई अरमान नए

हर गीत नया हर सांस नई

अब खिले खिले है फूल सभी

अब धुले धुले से रंग सभी

हर होठों की मुस्कान नई

हर दृष्टि नई हर आस नई

एक बिजली थी जो बरस 

इक बदली थी जो बरस गई

अब नवयुग का यह चरण नया

जन जन का अव हर जन्म नया

हर राग नया हर साज नया

नवयुग का हर राग नया

जीवन की धडिया सरस हुई

इक बदली थी जो बरस गई

डॉ राम शंकर चंचल

झाबुआ मध्य प्रदेश