वापस आ जाना

 मेरे बिन जब रहा न जाएं, जुदाई मुझसे सहा न जाएं। भूल  हमारी  तू- तू, मैं-…

संजीव-नी

एहसासों को लहु पिलाता हूं ।। परछाई में तेरी रंग मिलाता हूं, एहसासों को लहु पिलाता…

करवाचौथ का चांद

आकर्षित करती महिलाये साजन को, गोल चांद जैसी बिंदी बना माथे पे सजाती।। शुक्र है चांद…

हम किसी के मोहताज नहीं हैं

रखे रहो अपना मंच, माला, माइक रखे रहो अपनी मचान रखे रहो अपना छल ज्ञान  रखे…

कविता सदैव ही बची रही..

कविता सदैव ही भयमुक्त रही समय के उतार-चढ़ावों में , कितनीं भी.. कैसी भी.. सभ्यताएं प्रचलन…

बीता हुआ कल – आने वाला कल

i मां कष्ट सहकर, औलाद पैदा करती। जीवन का एक – एक पल, औलाद पर न्योछावर…

मैं दिल्ली हूँ!

अब शून्य तक पहुँचकर मन चुप हो चला है। क्षितिज अंबर से बादल नहीं बर्षा है।…

शीर्षक- “शहर पराया हैं”

ये कैसी जहरीले हवाओं में अपना घर बनाया हैं, सबकुछ वही मगर क्यों लगता ये शहर…

एक ख्वाब

“””””””””””” जिस ख्वाब का  वर्षों से था इंतजार  वह ख्वाब  आज आया। कभी-कभी   सोचता हू  इस…

ख्वाहिशों का निमंत्रण

ख्वाहिशों ने रंगीन सपना दिखाया बहुत है। मुझे इसने बहलाकर आजमाया बहुत है।। फँस ना जाऊँ…