बेपतवार सफ़ीना

दौड़ती  लहरें लौट के फिर से समन्दर जाएगी।

कुछ और पीड़ाएँ अभी दिल के अंदर जाएगी।

ये  इश्क  है , इसे   हवा  का  झोंका  न  समझ,

कि   हौले   छू   कर   यूँ    ही   गुजर   जाएगी।

दिल  के    तख़्तो- ताज  पलट  देगी पलभर में

इश्क  में  उनकी  गलतियाँ अगर  सुधर जाएगी।

बड़ी  शौख  से  देते  थे ताना वो रोज़ अमीरी को

मालूम था सच मान लिया तो सूरत उतर जाएगी।

आग कोई खेलने की चीज तो न थी, कि छूना था

लगा दी है तो आँच कुछ इधर कुछ  उधर जाएगी।

बड़ी   मासूमियत   से   वो  करता   है  फरेब   भी

तासीर  मीठी  है , पर काम तो अपना कर जाएगी।

खुशी की  चाह  ने  दिए ,हर  तरफ  ग़म  के  थपेड़े,

जिंदगी  बेपतवार  सफ़ीना है  जाने किधर जाएगी।

दीपप्रिया मिश्रा रांची, झारखंड