मदमाता ऋतुराज

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खिल उठा सूरज सुनहरा हो करके उत्तरायण,

रश्मिरथी है आ रही मद्धम  मद्धम  खिलकर। 

शिशिर ऋतु आती तभी भास्कर होते दक्षिणायन,

तरुणाई छाई नूर बिखरा शिशिर को विदा कर।

तन बदन मन खिल उठा आभा भानु की पाकर, 

प्रकृति का आंगन सुरभित हुआ बसंत आगमन।

 स्वच्छंदता से घूमते पशु पक्षी घरौदों से निकलकर, 

पुरा पल्लव छोड़ तरु ओढ़ते नव सुकोमल पत्रण।

पीहू पीहू बोले पपिहरा प्रिय मिलन की आस में, 

आम्र तरु सजे बौरों के गुच्छे कर्णफूल सम खास से। 

छाई हरीतिका बासंती हवा सुगंधित बहे हर सांस में,

कुहू कुहू के गीत सुनाए कोयलिया मदमस्त झूमे मधुमास में।

खेतों में छाया बसंत तरुणाई पर है सरसों पीली पीली, 

गेहूं भी झूम-झूम लहराता सर पर सजाएं बाली गीली।

उद्यानों में सतरंगी पुष्प यौवन पर है मंडराती तितली, 

फूलों पर मंडराते सुंदर सुकोमल पराग चूमते अलि।

कामदेव रति हुए अनंदित छाया है नर नारी के मन पर बसंत, 

मां सरस्वती हुई अवतरित कर में पुस्तक वीणा करती झंकृत। 

छटा देख अनुपम अलौकिक खुश है ‘अलका’ का मन अनंत, 

मौसम सुहाना सृष्टि का नजराना सब हो उठे जीवंत।

अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’

लखनऊ उत्तर प्रदेश।