क्या सब कुछ बदल जायेगा?

अपने गर्भ में  तारीख महीनों को पाल रहा  कैलेण्डर जनेगा  एक और नया साल  जिसकी रेखा…

अंबर से मुलाक़ात कर 

…. छूकर अंबर आएं पंछी अंबर से मुलाक़ात कर, छूकर ज़मी बैठ गए दरख्त की शाख…

मोदी जी की गारण्टी

बेरोजगार, भूखा, बीमार मज़दूर-किसान सब हैं लाचार शिक्षित और अशिक्षित सारे युवाओं के हाथों में घण्टी…

स्वप्न से परे स्त्री

वो स्वतंत्र थी तो कैद की गई वो सीधी थी तो सताई गई वो उन्मुक्त थी…

उम्मीद 

**** उम्मीद मैने भी की  पर तोड़ दी गयी  कभी थामा गया  तो कभी छोड़ दी…

अपनो से ही हारता आदमी

मत पूछो.. …? बस जिंदगी जी रहा हैं आदमी हंस भी रहा हैं ..दिन भर सब…

निराश नहीं है वह आदमी 

अनाज मंडी में कंधे पर बोरियाँ ढोता बीड़ी के कश से धुआं उड़ाता पसीने से तरबतर…

चौराहे पर जीवन देखा

चौराहे पर जीवन देखा, घुटता-सा हर तन-मन देखा, उन आँखों में जो सपने थे, उनको मरते…

शहरों की नीयत ठीक नहीं,

टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों के बीच, नन्हें-नन्हें पैरों के निशान, तोतली बोली में झूमती हवाएं, लहरा लहरा कर…

बनवाँ में बड़ा दुख होई     . 

(राम द्वारा सीता को समझना)  बनवाँ में बड़ा दुख होई,  सिया मोर घरहीं में रहिजा हो…